राजनीति
भाजपा नेताओं की दबंगई और संविधान का अपमान भारत के लिए खतरा

भाजपा नेताओं की दबंगई और संविधान का अपमान भारत के लिए खतरा
उत्तर प्रदेश
भारत का लोकतंत्र, जिसे दुनिया का सबसे जीवंत तंत्र माना जाता है, आज एक अजीब दौर से गुजर रहा है। 2025 में देश के कई हिस्सों से ऐसी खबरें आईं, जिनमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं पर सरकारी अधिकारियों—खासकर एसडीएम और पुलिसकर्मियों—पर हमले के गंभीर आरोप लगे। ये घटनाएं न केवल कानून-व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करती हैं, बल्कि उस संवैधानिक ढांचे पर करारा प्रहार करती हैं, जो हमें एकजुट रखता है।जून 2025 में ओडिशा के भद्रक जिले में भाजपा नेता जीबन राउत पर एक अतिरिक्त आयुक्त को सरेराह पीटने का सनसनीखेज आरोप लगा। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में राउत और उनके समर्थकों ने कथित तौर पर अधिकारी को अपमानित किया, जो अवैध निर्माण पर कार्रवाई कर रहे थे। विपक्ष ने इसे “भाजपा का गुंडाराज” करार देते हुए तीखी आलोचना की। उसी महीने, उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में भाजपा विधायक प्रकाश द्विवेदी पर एसडीएम अमित शुक्ला और उनके लिपिक पर हमले का आरोप लगा। यह मामला अवैध बालू खनन से जुड़ा था। खबरों के मुताबिक, विधायक अपने काफिले के साथ पहुंचे और हिंसा पर उतारू हो गए। सोशल मीडिया पर इसे “सत्ता का नंगा नाच” बताया गया। जुलाई 2025 में हिमाचल प्रदेश के शिमला में सड़क निर्माण परियोजना के विवाद में पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह पर एनएचएआई अधिकारियों को कमरे में बंद कर पीटने का आरोप लगा। भाजपा के अविनाश राय खन्ना ने इसकी निंदा की, लेकिन घटना ने सत्ता और प्रशासन के बीच टकराव को उजागर कर दिया।भारत का संविधान हमें अभिव्यक्ति की आजादी (अनुच्छेद 19) और शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार देता है, लेकिन हिंसा को जायज नहीं ठहराता। एसडीएम और पुलिसकर्मी संवैधानिक व्यवस्था के प्रतीक हैं। उन पर हमला करना लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार है। भाजपा, जो “राष्ट्रवाद” और “संस्कार” का दम भरती है, के कुछ नेताओं का यह व्यवहार उनकी छवि पर सवाल उठाता है। सत्ता का मतलब कानून से ऊपर होना नहीं, बल्कि जनसेवा है। इन घटनाओं के पीछे सत्ता का अहंकार, प्रशासन और जनता के बीच संवाद की कमी, और नेतृत्व में संवैधानिक मूल्यों के प्रति सम्मान का अभाव साफ दिखता है।अनुच्छेद 51A हमें कानून का पालन और हिंसा से दूर रहने का कर्तव्य सिखाता है। लेकिन जब सत्ताधारी दल के नेता ही इस कर्तव्य को भूल जाते हैं, तो लोकतंत्र का क्या होगा? समस्याओं का समाधान थप्पड़ों से नहीं, बल्कि संवाद, शांतिपूर्ण प्रदर्शन और कानूनी प्रक्रियाओं से होता है। इन घटनाओं से यह सवाल उठता है कि क्या सत्ता का नशा कुछ नेताओं को इतना अंधा कर देता है कि वे संविधान को ही भूल जाते हैं?इन हालात से निपटने के लिए कठोर कानूनी कार्रवाई जरूरी है। चाहे वह विधायक हो या आम आदमी, कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए। प्रशासन को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाना होगा, साथ ही अधिकारियों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए जाएं। स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक मंचों पर संवैधानिक मूल्यों की शिक्षा को बढ़ावा देना होगा, ताकि जनता और नेता दोनों यह समझें कि सत्ता सेवा का माध्यम है, न कि दबंगई का। भाजपा को भी अपने नेताओं पर लगाम कसनी होगी, वरना ऐसी घटनाएं पार्टी की साख पर बट्टा लगाएंगी।लोकतंत्र संविधान के दम पर चलता है। ये हिंसक घटनाएं हमारे लोकतांत्रिक ढांचे पर काला धब्बा हैं। जनता और नेताओं, दोनों को यह समझना होगा कि हिंसा से न न्याय मिलता है, न बदलाव। आइए, हम संकल्प लें कि संविधान का सम्मान करेंगे और हिंसा का रास्ता छोड़कर संवाद को अपनाएंगे। क्योंकि लोकतंत्र की ताकत थप्पड़ों की गूंज में नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों के सम्मान में है।संदेश साफ है: लोकतंत्र को थप्पड़ नहीं, समर्थन चाहिए।