धर्म

गुरु पूर्णिमा पर्व शिष्य एवं गुरु के आत्म प्रकाश का मिलन दिवस है : डॉक्टर  मुरलीधर सिंह शास्त्री अधिवक्ता 

गुरु पूर्णिमा पर्व शिष्य एवं गुरु के आत्म प्रकाश का मिलन दिवस है : डॉक्टर  मुरलीधर सिंह शास्त्री अधिवक्ता
मा उच्च न्यायालय इलाहाबाद एवं लखनऊ पीठ की कलम से
अयोध्या धाम
कोई व्यक्ति  राज परिवार या ब्रह्म कुल परिवार में परिवार में जन्म लेने से या उच्च परिवार में जन्म लेने से गुरु नहीं हो सकता साधना एवं कठोर परिश्रम से ही  गुरु बनना पड़ता है
 सनातन धर्म का एवं ऋग्वेद का यही संदेश है
 अनुसूचित जनजाति एवं आदिम समाज में पेड़ को या पहाड़ को गुरु माना जाता है
जिसे टोटम (TOTAM) कहते हैं
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह हम लोग गुरु के रूप में किसी प्रतीक चिन्ह को स्थापित करें
गुरु पूर्णिमा ज्ञान की एवं प्रेरणा की  पूर्णिमा है
 हम लोग आस्था से मनाई और गुरु होने के लिए किसी व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है
परंतु संकल्प की आवश्यकता ह
 जैसे भारत का सबसे बड़ा संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवा संघ (केसरिया ध्वज) को अपना गुरु मानता है
इस तरह हम केसरिया ध्वज को किसी वृक्ष को किसी प्रतीक को गुरु मान सकते हैं
भगवान गौतम बुद्ध ने
भी गुरु के संबंध में कहा था आप स्वयं गुरु बानो बाह्य( अपपोदीपो,भाव) जगत की ओर मत देखो
 भगवान श्री कृष्ण ने
 भी कहा भगवान  स्वयं जगतगुरु थे (कृष्णम बंदे जगत गुरु )
 तथा सबसे बड़े गुरु की व्याख्या का अर्थ हमारे गुरु ब्रह्मा विष्णु महेश है जि,से रचना करने की
 पालन करने की
एवं संहार करने की क्षमता हो
 वही गुरु हो सकता और आवश्यक आडंबर से बच्चे और फर्जी बाबाओ से बचें
गुरु पूर्णिमा  व्यास पूर्णिमा  आषाढ़ पूर्णिमा  प्रेरक पूर्णिमा   को गुरु पूर्णिमा करते हैं
महर्षि वेदव्यास जी  जो पुराणों  महाभारत के रचना करने वाले हैं उनका जन्म हुआ था
उस वेदव्यास कि कैसे गुरु है जिन्होंने कभी अपने शिष्यों  से कुछ नहीं मांगा
केवल शिष्यों को दिया जबकि
 भगवान पुरुषोत्तम के अवतार  उतार है एवं अमर है
और हस्तिनापुर  राजमाता सत्यवती की पुत्र थे
 चाहते तो महाभारत नही होता
गुरु का काम  गाइड करना होता है कि आप आगे बढ़े
 गुरु के  संबंध में ऋग्वेद में
 कहां गया है
कि माता के समान कोई गुरु नहीं होता
पिता के समान कोई देव नहीं होता
 पत्नी के समान कोई मित्र नहीं होता और भाइयों /पुत्र ,के समान कोई  साथी नहीं होता
माता सबसे पहले हमारी ही गुरु  है लेकिन आजकल माताओं को मातृशक्ति का अपमान किया जिस  समाज में मातृशक्ति का अपमान हुआ है
उसका पतन निश्चित हुआ है
इसके उदाहरण पश्चिमी  जगत है जहां पर माताओं के अपमान के पतन हो रहा है
विश्व में अनेक देशों में युद्ध चल रहा है   रोकने वाला कोई नहीं है   युद्ध  के हथियार बेचने वाले देश अपना अपना सामान बेचने को तैयार है
 हम भारत के सनातन परंपरा को याद करते हैं सनातन प्रमाण परंपरा में वर्ण व्यवस्था का उल्लेख किया गया
लेकिन आज भारत में जाति व्यवस्था और जाति व्यवस्था के कारण इस देश को 1200 ई से 1947ई तक गुलाम रहना पड़ा
तथा आज 2025 में भी हम गुलामी की ओर जातिगत व्यवस्था के कारण भाषा के कारण  जा रहे  हैं रोकने की जरूरत है जैसे महाराष्ट्र तमिलनाडु आदि है
 महर्षि व्यास के बारे में कहा जाता है की उच्च कुल में पैदा नहीं हुए  तथा महर्षि वाल्मीकि के बारे में भी कहा जाता है की श्रेष्ठ कुल में पैदा नहीं होते
परंतु दोनों श्रेष्ठ कुल  में थे
छोटे समाज में इनका लालन पालन हुआ था
इसी तरह महाराज कर्ण का था वह राजकुमार थे लेकिन छोटे समाज में पालन हुआ था
 लेकिन किसी के पालन होने से कोई छोटा नहीं होता
सभी को कर्तव्य करना पड़ता है
जो जितना अच्छा कर्तव्य करता है वहीं राजा बनता है जैसे महाराजा जनक जी महर्षि विश्वामित्र जी आदि
वही गुरु बनता है
आजकल के गुरु माया को छोड़ने को कहते हैं
तथा यह भी कहते हैं कि सभी धन हमें दे दो हमको  को समर्पित कर दो मैं आपका कल्याण करूंगा
 रसिया के जार शासन के पादरी रासपुतिन की  की तरह
 लेकिन आज के इस युग में मैं सामाजिक धार्मिक क्षेत्र में  सन 1977 ई से हूं  हमको तो कोई गुरु मिला नहीं चाहे उत्तर भारत का तीर्थ स्थान हो चाहे दक्षिण भारत का तीर्थ स्थान सभी व्यावसायिक  गुरु  अपना अपना सिद्धांत की व्याख्या करते हैं मैटर एवं प्रेरक बने हुए हैं
पर ईश्वर से किसी का साक्षात्कार नहीं जिसे ईश्वर से साक्षात्कार है उसको शिष्य की आवश्यकता नहीं तथा जिस  शिष्य को ईश्वर का आभास है उसको गुरु की आवश्यकता नहीं
इसका साक्षात
उदाहरण भगवान गौतम बुद्ध भगवान महावीर महात्मा कबीर संत तुकाराम संत नामदेव संत ज्ञानेश्वर संत यज्ञ वर्क आदि प्रमुख सभी व्याख्या कर अपनी दुकान चलाते हैं पर भगवान गौतम बुद्ध ने कहा है कि बाहर मत खोजो अपने आप के अंदर खोजो
इसलिए उन्होंने (आपपो दीपो भव) का संदेश दिया था
तथा कहा है कि स्वयं प्रकाश पुंज बानो
 दूसरों के लिए प्रकाश तो अज्ञानता के नष्ट करने के लिए सबसे बड़ा अनुभव है और अभ्यास है
 इसको करना चाहिए तथा
 विकास कर दिया भागवत कथा का उल्लेख है कोई भी व्यक्ति जिसको ज्ञान है भागवत का सकता है
वह गुरु बन सकता है गुरु बनने के लिए किसी  किसी या कान में मंत्र लेने की आवश्यकता नहीं
 सत्य संकल्प की आवश्यकता किसी संकल्प को लेकर चलिए
 किसी को किसी वस्तु को गुरु मान सकते हैं किसी पेड़ को गुरु मान सकते हैं किसी प्रतीक को गुरु मान सकते हैं किसी भी चीज को गुरु मान सकते हैं
 जैसे विश्व का एवं भारत का सबसे बड़ा सनातन धर्म का प्रचार करने वाला संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है
इसमें गुरु के रूप में झंडा को स्थापित किया गया है
केसरिया झंडा को इसलिए व्यक्ति न होकर एक वस्तु है
 जो एकता का प्रतीक है व्यक्ति में प्रमाद होगा
 व्यक्ति में लालच होगा
पर एक वस्तु में कभी लालच नहीं होगा
हमारे आदिम समाज में भी
 वस्तु को देवता माना जाता है
(उसको टोटम )कहते हैं
इस व्यवस्था को हम लोग आगे बढ़ाएं सभी समाज के लोग विद्वान हैं और गुरु होने योग्य हैं
सभी समाज में 10 /15 परसेंट गड़बड़ होते हैं और 10/ 15 परसेंट उत्कृष्ट विद्वान होते हैं
 तो हम लोगों को विद्वान बनने के लिए काम करना है
गड़बड़ होने के लिए नहीं
गुरु पूर्णिमा का ही संदेश है
 गुरु अपने आप को मन अपने संकल्प ले  और
 बायआडंबर से दूर रहे
और जो संसाधन अनावश्यक रूप से बाहरी लोगों में फेंकते हैं
 उन संसाधनों का संरक्षण
 करके
राष्ट्र के निर्माण में जहां भी हो भारतीय संविधान के तहत सनातन धर्म मानव समाज की अपनी भूमिका निभाई
जय गुरु परंपरा जय गुरुदेव व्यास जी जय गुरुदेव हनुमान जी जय गुरुदेव विश्वामित्र जी जय गुरुदेव परमानंद जी जय गुरुदेव रामानंद जी जय गुरुदेव परशुराम जी
 जय हिंद जय भारत जय सनातन धर्म

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!