धर्म
कथावाचकों को ज्ञान फैलाना चाहिए, भ्रम नहीं : राजर्षि महंत एकनाथ

कथावाचकों को ज्ञान फैलाना चाहिए, भ्रम नहीं : राजर्षि महंत एकनाथ
अयोध्या धाम
अनिरुद्ध आचार्य की स्त्री टिप्पणी पर बोले— ‘व्यक्तिगत अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए’
वृंदावन के एक कथावाचक अनिरुद्ध आचार्य द्वारा स्त्रियों पर की गई विवादित टिप्पणी को लेकर ओजस्वी फाउंडेशन के अध्यक्ष राजर्षि महंत एकनाथ महाराज ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि धर्म और कथा का उद्देश्य समाज में सद्भाव और ज्ञान फैलाना होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप या अपमान।
एकनाथ महाराज ने कहा:
“आजकल कई कथावाचक धर्म का असली उद्देश्य भूल चुके हैं। वे कथा मंच से लोगों के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं—यह न केवल अनैतिक है बल्कि मानवीय अधिकारों का भी हनन है। भगवत गीता का उद्देश्य समाज को जागरूक करना था, न कि किसी स्त्री के आचरण पर टिप्पणी करना।”
उन्होंने कहा कि आज का कथाकार स्वयं को भगवान समझने लगा है, जबकि भगवत गीता भी अर्जुन को प्रेरित करने का माध्यम मात्र थी। “कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया, यह केवल युद्ध जीतने के लिए नहीं, बल्कि कर्तव्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने के लिए था। आज के कथाकार गीता की आत्मा को भुलाकर केवल बाहरी दिखावा कर रहे हैं।”
विवादित बयानों पर कटाक्ष करते हुए कहा:
“कोई कहता है विभूति लगाने से कैंसर ठीक होता है,कोई कहता पर्ची हनुमान जी निकालते है..
कोई नीबू मिर्ची टांगने से लक्मी आएगी….
कोई कहता हनुमान जी मेरे अंदर प्रगट होते है…
यह सब अज्ञान फैलाना है, न कि धर्म प्रचार। अगर कथावाचक जनता को भ्रमित करेंगे तो समाज कैसे जागरूक होगा?”
विकास बनाम अंधविश्वास की तुलना:
“जब अमेरिका, जापान, रूस तकनीक और विज्ञान में आगे बढ़ रहे हैं, तब हम आज भी मिर्च-नींबू में उलझे हैं। सनातन धर्म एक विज्ञान है, इसे समझने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अपनाने की ज़रूरत है।”
गंभीर चेतावनी:
एकनाथ महाराज ने अंत में कहा कि कथावाचकों को आत्मचिंतन करना चाहिए। कथा मंच से आस्था जगाई जाए, न कि किसी समुदाय या वर्ग को नीचा दिखाया जाए। धर्म का मर्म तभी जीवित रहेगा जब उसका प्रचार सत्य और करुणा के साथ किया जाए।