अयोध्या धामधर्म
सनातन धर्म में माता सिद्धिदात्री देवी की पूजा का विशेष महत्व : वरिष्ठ पत्रकार श्री महेन्द्र त्रिपाठी जी

सनातन धर्म में माता सिद्धिदात्री देवी की पूजा का विशेष महत्व : वरिष्ठ पत्रकार श्री महेन्द्र त्रिपाठी जी
अयोध्या धाम
माता सिद्धिदात्री सभी सिद्धियों की दात्री, करुणामयी और कल्याणकारी देवी हैं। वे अपने भक्तों को अद्भुत सिद्धियाँ, आत्मबल और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती हैं। उनकी कृपा से मनुष्य का अहंकार समाप्त होता है और भक्ति तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है।
माता सिद्धिदात्री माँ दुर्गा का नवम स्वरूप हैं, जिनकी उपासना नवरात्रि के नौवें दिन की जाती है। वे अपने भक्तों को अष्टसिद्धि और नव निधियों का वरदान देती हैं। यह स्वरूप माँ दुर्गा का सबसे पूर्ण और दिव्य रूप माना जाता है।
माता सिद्धिदात्री को देवी पार्वती का परम आध्यात्मिक स्वरूप भी कहा जाता है। शिवजी ने भी इन्हीं की कृपा से अर्धनारीश्वर रूप धारण किया था।
*माता सिद्धिदात्री की विशेषताएं*
रूप: माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं, अत्यंत तेजस्वी और कमल पर विराजमान रहती हैं।
वस्त्र: लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र धारण किए रहती हैं।
आभूषण: स्वर्ण आभूषणों और पुष्पमालाओं से अलंकृत रहती हैं।
वाहन: माता का वाहन सिंह (शक्ति और साहस का प्रतीक) है, किंतु कभी-कभी उन्हें कमल पर विराजमान भी दर्शाया जाता है।
हथियार और मुद्रा:
दाहिने हाथ में गदा और चक्र।
बाएँ हाथ में शंख और कमल।
*पौराणिक कथा*
श्रीमद् देवीभागवत पुराण के अनुसार, जब भगवान शिव ने सृष्टि के आरंभ में शक्ति से अर्धनारीश्वर रूप धारण किया था, तब शक्ति ने अपने सिद्धिदात्री रूप से शिव को अष्टसिद्धियाँ प्रदान कीं। इन्हीं सिद्धियों से ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सृष्टि की रचना, पालन और संहार का कार्य किया।
कहा जाता है कि देवी सिद्धिदात्री ही ब्रह्मांड की मूल शक्ति हैं और उनके पूजन से सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
*माता सिद्धिदात्री की उपासना का महत्व*
1. अष्टसिद्धि और नव निधि प्राप्त होती हैं।
2. साधना में सफलता और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
3. अहंकार और पापों का नाश होता है।
4. ज्ञान, विवेक और भक्ति की वृद्धि होती है।
5. मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में संतुलन आता है।
*माता सिद्धिदात्री की पूजा विधि*
1. पूजा का समय
नवरात्रि के नौवें दिन सूर्योदय के समय पूजा करना शुभ माना जाता है।
2. पूजा सामग्री
कमल का फूल, लाल/गुलाबी वस्त्र, सिंदूर, कुमकुम, धूप, दीपक, दूध से बनी मिठाई।
3. पूजा विधि
माँ का ध्यान करें:
“ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः”
उन्हें स्नान कराकर पुष्प और अक्षत अर्पित करें।
खीर या हलवे का भोग अर्पित करें।
धूप-दीप जलाकर आरती करें।
माता से सिद्धि, ज्ञान और सफलता की प्रार्थना करें।
*माता सिद्धिदात्री के मंत्र*
ध्यान मंत्र
“सिद्धगंधर्वयक्षाघैरासुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥”
बीज मंत्र
“ॐ ह्रीं सिद्धिदात्र्यै नमः”
स्तोत्र
“या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
*माता को प्रिय भोग*
माता सिद्धिदात्री को कमल का फूल, नारियल और दूध से बनी मिठाइयाँ विशेष प्रिय हैं। लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र और पुष्प अर्पित करना शुभ माना जाता है।
*माता सिद्धिदात्री से क्या सीखें?*
1. ज्ञान और विनम्रता – सिद्धियाँ पाकर भी अहंकार न करना।
2. समर्पण – भक्ति और श्रद्धा से साधना करना।
3. आध्यात्मिक उन्नति – जीवन में भौतिकता से ऊपर उठकर आत्मबल और विवेक प्राप्त करना।
4. संतुलन और सफलता – साधना और कर्म दोनों में संतुलन बनाना।




