लोक अदालत की मूल भावना में लोक कल्याण की भावना समाहित है : जनपद न्यायाधीश श्री रणंजय कुमार वर्मा जी

लोक अदालत की मूल भावना में लोक कल्याण की भावना समाहित है : जनपद न्यायाधीश श्री रणंजय कुमार वर्मा जी
अयोध्या
माननीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली के तत्वाधान में उ0प्र0 राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, लखनऊ के दिशानिर्देश पर राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन जनपद न्यायालय, अयोध्या परिसर में दिनांक-13.09.2025 को माननीय जनपद न्यायाधीश महोदय के निर्देशन में नोडल अधिकारी श्री दीपक व अपर जिला जज/सचिव, श्री अनिल कुमार वर्मा के द्वारा कराया गया। जिसका शुभारंभ माननीय जनपद न्यायाधीश/अध्यक्ष, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, अयोध्या श्री रणंजय कुमार वर्मा जी के कर कमलों द्वारा माॅं सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ किया गया। माॅं सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के समय अपर जनपद न्यायाधीश श्रीमती शिवानी जायसवाल, श्री राकेश कुमार, श्री सुरेन्द्र मोहन सहाय, विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट निरूपमा विक्रम, अपर जनपद न्यायाधीश श्री मोहिन्दर कुमार, श्री इन्द्रजीत सिंह, श्रीमती प्रतिभा नारायण, श्री प्रेम प्रकाश, श्री प्रदीप कुमार सिंह, श्री रवि गुप्ता, श्री विजय विश्वकर्मा, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री सुधांशु शेखर उपाध्याय, अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री सतीश कुमार मगन, श्री महेन्द्र सिंह पासवान, श्री बलराम दास तथा सुश्री एकता सिंह, सुश्री निवेदिता सिंह, सुश्री रूपाली सिंह व अन्य सम्मानित न्यायिक अधिकारीगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम के उद्घाटन का संचालन श्री महेन्द्र सिंह पासवान द्वारा किया गया।

इस अवसर पर माननीय जनपद न्यायाधीश श्री रणंजय कुमार वर्मा जी ने संस्कृत के इस श्लोक के साथ अपना उद्बोधन प्रारम्भ किया- ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत‘‘ माननीय जनपद न्यायाधीश द्वारा अपने उद्बोधन में बताया गया कि लोक अदालत की मूल भावना में लोक कल्याण की भावना समाहित है। सुलह समझौता के दौरान सभी का मान, सभी का सम्मान, सभी को न्याय मिले इसका ध्यान रखा जाता है। राष्ट्रीय लोक अदालत में दोनों पक्षों के हितों को ध्यान में रखकर आपसी सुलह-समझौते के माध्यम से वादों को निस्तारित कराया जाता है। इतिहास में दर्ज है कि सदियों पहले जब अदालतें नहीं हुआ करती थी तब दो पक्षों के आपसी मतभेद को सुलह-समझौता के माध्यम से समाज के गणमान्य व्यक्ति एक निर्धारित स्थल पर बैठकर दोनों पक्षों की बात सुनकर यह निर्णय लेते थे कि दोनों पक्षों का हित किसमें हैं। इसी को देखते हुए सुलह-समझौता कराते थे और समाज में इसके सार्थक परिणाम भी दिखाई पड़तें थे। सुलह समझौते में दोनों पक्षों के मध्य आपसी क्लेश, मतभेद एवं दुर्भावना समाप्त हो जाती थी। लोक कल्याण के भावना से ओत-प्रोत उसी स्वरूप को माननीय उच्चतम न्यायालय, माननीय उच्च न्यायालय द्वारा विस्तार रूप देते हुए एक स्थल, एक मंच पर बहुत सारे वादों को सुलह-समझौता के आधार पर समाप्त कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय लोक अदालत आयोजित कराने के निर्देश दिये जाते हैं, जिसमें दोनों पक्षों के हित के साथ सामाजिक प्रेम भावना भी समाहित है। उन्होंने आगे कहा कि लोग मिल-जुल कर प्रेम भावना से रहे, जो समाज एवं राष्ट्र के हित में है। यदि आपसी मतभेद पनपते भी हैं, तो उसे शांत एवं सद्भाव के साथ समाप्त करने का प्रथम प्रयास दोनों पक्षों द्वारा किया जाना चाहिए। यदि प्रथम प्रयास में दोनों पक्ष सफल नहीं होते है तभी उन्हें न्यायालय के शरण जाना चाहिए। उन्होंने आगे बताया कि जनपद न्यायालय परिसर के अतिरिक्त क्लेक्टेªट एवं सभी तहसीलों में आपसी सुलह-समझौता के आधार पर वादों का निस्तारण कराया जाएगा।

इस अवसर पर सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण श्री अनिल कुमार वर्मा ने कहा कि सुलह समझौते के माध्यम से वादकारी के धन व समय की बचत होती है। लोक अदालत के आयोजन में आने वाले दोनों पक्षों के बैठने, शुद्ध पेयजल आदि की समुचित व्यवस्था करायी गई है। लोक अदालत में आने वाले सभी व्यक्ति के सुविधा का ख्याल रखा गया है और यह प्रयास किया जा रहा है कि आज इस वृहद लोक अदालत में अधिक से अधिक वादों को आपसी सुलह-समझौता के माध्यम से समाप्त कराकर लोगों को राष्ट्रीय लोक अदालत के उद्देश्य का लाभ दिलाया जा सके। उन्होंनें आगे बताया की धारा 138 पराक्राम्य लिखत अधिनियम (एन.आई.ऐक्ट), बैंक वसूली वाद, श्रम विवाद वाद, विद्युत एवं जलवाद बिल, (अशमनीय वादों को छोड़कर) अन्य आपराधिक शमनीय वाद, पारिवारिक एंव अन्य व्यवहार वाद, पारिवारिक विवाद, भूमि अधिग्रहण वाद, सर्विस मैटर से संबन्धित वेतन, भत्ता और सेवानिवृत्ति लाभ के मामले, राजस्व वाद, जो जनपद न्यायालय में लम्बित हों तथा अन्य सिविल वाद आदि निस्तारित किये गये। विगत राष्ट्रीय लोक अदालत दिनांकित- 08.03.2025 में 58970 तथा दिनांकित- 10.05.2025 में 62308 वाद निस्तारित किये गये थे, इस बार की राष्ट्रीय लोक अदालत में अधिक वादों के निस्तारण के लक्ष्य को सर्वोपरि रखते हुए तैयारी की गयी थी, जिसके फलस्वरूप सभी न्यायिक अधिकारीगण के अथक प्रयास व प्रशासन के सहयोग व बैंक की सहभागिता से कुल 67134 वादांे का सफलतापूर्वक निस्तारण कराया गया। यह राष्ट्रीय लोक अदालत के प्रति सभी का सामूहिक सहयोग व सराहनीय कार्य के फलस्वरूप ही सम्भव हुआ है। श्री दीपक यादव, नोडल अधिकारी, राष्ट्रीय लोक अदालत/अपर जिला जज द्वारा अपने उद्बोधन में कहा गया कि राष्ट्रीय लोक अदालत में पक्षकारों द्वारा अपने वादों का निस्तारण कराने से धन व समय की बचत होती है, आपसी प्रेम भाईचारे व बन्धुता की भावना समाज में पनपती है। पूर्व की राष्ट्रीय लोक अदालत में निस्तारित वादों से अधिक वादों के निस्तारण का लक्ष्य रखते हुए इस राष्ट्रीय लोक अदालत में पहले से तैयारी की गयी थी जिसमें हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहे हैं और अपने इस प्रयास को उत्तरोत्तर जारी रखेंगे तथा राष्ट्रीय लोक अदालत के उद्देश्यों को सफल बनाने में अपना योगदान देते रहेंगे । इस राष्ट्रीय लोक अदालत कुल 67134 वादों को निस्तारित किया गया एवं कुल समझौता राशि मु0 141495754/- रू0 है।
पीठासीन अधिकारी ड।ब्ज् श्री शेषमणि द्वारा कुल 77 वाद निस्तारित किये गये, तथा कुल 61932647/- रू0 की धनराशि क्षतिपूर्ति निर्धारित की गयी, प्रधान न्यायाधीश कुटुम्ब न्यायालय द्वारा 72 वाद निस्तारित किये गये तथा पीठासीन अधिकारी कामर्शियल कोर्ट द्वारा 11 वाद निस्तारित किये गये। बैंक रिकवरी से संबन्धित 1156 प्री-लिटिगेशन वाद निस्तारित किये गये तथा बैंक संबन्धित ऋण मु0- 54699409/- रू0 का सेटेलमेंट किया गया, जो विगत लोक अदालत की तुलना में अधिक है। यह एल0डी0एम0 गणेश सिंह यादव द्वारा उठाया गया एक सराहनीय कदम है।
राष्ट्रीय लोक अदालत में सत्र न्यायालय द्वारा 72 वाद तथा मजिस्ट्रेट न्यायालयों द्वारा 18047 मामले निस्तारित किये गये, जिसके एवज में कुल मु0 10935398/- रू0 अर्थदण्ड अध्यारोपित किया गया। इस प्रकार विभिन्न न्यायालयों द्वारा कुल 18119 मामले निस्तारित किये गये। राष्ट्रीय लोक अदालत में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा 3495 वाद अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम द्वारा 2060 वादों का निस्तारण किया गया एवं सिविल न्यायालय द्वारा कुल 70 मामलों का निस्तारण किया गया, जो विगत लोक अदालत की तुलना में अधिक है। यह सभी के द्वारा किये गये सामूहिक प्रयास का द्योतक है । राजस्व से संबन्धित 27644 मामले विभिन्न राजस्व न्यायालय द्वारा निस्तारित किये गये इस राष्ट्रीय लोक अदालत में पीठासीन अधिकारी (वर्चुअल कोर्ट) श्री प्रत्युश आनंद मिश्रा ने अथक प्रयास करते हुए 20215 वादों का निस्तारण किया। राष्ट्रीय लोक अदालत के सफल आयोजन में श्री प्रत्युश आनंद मिश्रा द्वारा अत्यंत ही सराहनीय कार्य किया गया है।




