उत्तर प्रदेशधर्म
श्री राजसूय यज्ञ महासभा धर्माधारित नेतृत्व और ग्राम पुनर्जागरण की एक राष्ट्रीय पहल : संस्थापक पण्डित श्री राजेन्द्र त्रिपाठी जी

श्री राजसूय यज्ञ महासभा धर्माधारित नेतृत्व और ग्राम पुनर्जागरण की एक राष्ट्रीय पहल : संस्थापक पण्डित श्री राजेन्द्र त्रिपाठी जी
उत्तर प्रदेश
भारत की आत्मा उसके ग्रामों में बसती है परंतु आज वही ग्राम सामाजिक विघटन, आर्थिक असमानता और राजनीतिक कलह से जूझ रहे हैं। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध प्रदेश में 58,000 से अधिक ग्राम पंचायतें हैं। इन ग्रामों में हर पाँच वर्ष में चुनाव होते हैं, परन्तु चुनावों ने भाईचारे की जगह विभाजन, प्रतिस्पर्धा और भ्रष्टाचार को जन्म दिया है।ग्राम स्तर पर शासन का यह ढाँचा, जो जनकल्याण का माध्यम बनना चाहिए था, आज विभाजन और द्वेष का कारण बन गया है।
2. राजसूय यज्ञ परंपरा : एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
राजसूय यज्ञ वेदों और पुराणों में वर्णित वह दिव्य परंपरा है जिसके माध्यम से प्राचीन भारत में श्रेष्ठ, लोककल्याणकारी और धर्मनिष्ठ शासक का चयन किया जाता था।यह केवल एक वैदिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि जनमत, आस्था और योग्यता का एकत्रित स्वरूप था।
3. श्री राजसूय यज्ञ महासभा : अवधारणा और नेतृत्व
श्री राजसूय यज्ञ महासभा एक आध्यात्मिक–सामाजिक संगठन है, जो संत–समाज, आचार्यगण, पुरोहितों, ब्राह्मणों और स्वयंसेवकों द्वारा संचालित होगा।महासभा का उद्देश्य है — “भारत में धर्माधारित नेतृत्व का पुनर्जागरण करना और ग्राम पंचायतों में यज्ञीय सर्वसम्मति से नेतृत्व का चयन सुनिश्चित करना।”
4. समस्या का सारांश : उत्तर प्रदेश की सामाजिक–राजनीतिक परिस्थिति
उत्तर प्रदेश में लगभग 58,000 ग्राम पंचायतें हैं। प्रत्येक पंचायत चुनाव में औसतन ₹3–5 लाख खर्च होते हैं। राज्य स्तर पर कुल चुनाव व्यय लगभग ₹2,000–2,500 करोड़ रुपए होता है। चुनावों के बाद 80% ग्रामों में विवाद, विरोध या मुकदमे होते हैं। सामाजिक एकता, परिवारिक संबंध और सांस्कृतिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
5. समाधान : राजसूय यज्ञ आधारित चयन प्रणाली
राजसूय यज्ञ महासभा इन सभी समस्याओं का धार्मिक, सामाजिक और व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करती है। प्रत्येक ग्राम में 11 दिवसीय राजसूय यज्ञ आयोजित किया जाएगा। यज्ञ की अध्यक्षता 1 आचार्य, 2 पुरोहित, 2 साधु और 2 स्वयंसेवक करेंगे। ग्राम के सभी लोग यज्ञ में सम्मिलित होकर सर्वसम्मति से अपने नेता का चयन करेंगे।
6. आर्थिक संरचना और स्थिरता
प्रत्येक राजसूय यज्ञ में अनुमानतः ₹2.5 लाख का व्यय होगा। इसमें से 1,39,000 रुपये कर्मियों और सामग्री पर खर्च होंगे।शेष राशि महासभा के प्रचार, प्रशासन और विकास कार्यों में प्रयुक्त होगी, जिससे प्रति यज्ञ लगभग ₹11,000 का अधिशेष रहेगा।

7. प्रमुख हितधारक (Stakeholders) और उनकी भूमिकाएँ
संत–साधु समाज : नेतृत्व, मार्गदर्शन और यज्ञ संचालनब्राह्मण–आचार्य वर्ग : धार्मिक प्रक्रिया और वैधानिकतास्थानीय ग्रामवासी : यजमान और सहभागितादानदाता व फंडर्स : आयोजन, प्रचार और स्थायी ढाँचासरकार : सहयोग और नीति समन्वययुवा स्वयंसेवक : प्रचार, तकनीकी और आयोजन सहयोग
8. संभावित लाभार्थी और उनके लाभ
ग्रामवासी : शांति, एकता, आत्मनिर्भरतासंत–आचार्य : धर्मसेवा और नेतृत्वदानदाता : पुण्य और प्रतिष्ठाप्रशासन : स्थिरता और खर्च में कमीयुवा वर्ग : सेवा और रोजगार
9. सामूहिक और व्यक्तिगत आह्वान (Call for Action)
संत–समाज: प्रत्येक संत कम-से-कम 5 ग्रामों को यज्ञ हेतु प्रेरित करें।ब्राह्मण–आचार्य: यज्ञ प्रशिक्षण प्रारंभ करें।जनता: यजमान बनें और सहभागिता करें।दानदाता: यज्ञ प्रकल्पों को प्रायोजित करें।प्रशासन: सहयोगी नीति बनाएं।सामूहिक आह्वान: आइए, हम सब मिलकर भारत में धर्म, एकता और नेतृत्व का नया युग आरंभ करें।
10. सारांश : अवधारणा का सार
श्री राजसूय यज्ञ महासभा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत के पुनर्निर्माण की आध्यात्मिक प्रक्रिया है। यह पहल साधु–संत समाज के नेतृत्व में ग्राम स्तर पर धर्म, संस्कृति और नीति का समन्वय स्थापित करती है।इसका उद्देश्य है — धर्माधारित नेतृत्व का पुनर्जागरण, ग्रामीण एकता, भ्रष्टाचार का अंत और भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में ठोस कदम।




