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अयोध्या का शास्त्रीय विकास भारत की सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में कदम: स्वामी शंकरांनंद महाराज

अयोध्या

अयोध्या का शास्त्रीय विकास भारत की सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में कदम: स्वामी शंकरांनंद महाराज

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देशभर में सनातन संस्कृति के संरक्षण और प्रचार-प्रसार को लेकर लगातार प्रयासरत स्वामी शंकरांनंद ने रविवार को अयोध्या और योगिनी एकादशी पर अपने विचार साझा करते हुए दोनों के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि अयोध्या केवल एक धार्मिक नगरी नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा है—जो सनातन धर्म की जड़ें और परंपराएं समेटे हुए है।

 

 

 

स्वामी शंकर ने कहा, “अयोध्या के विकास को शास्त्रीय और पारंपरिक तरीके से किया जाना चाहिए। यहां छोटे-छोटे मंदिरों का जीर्णोद्धार, प्राचीन धर्मशालाओं का पुनर्निर्माण, और शास्त्र, संगीत तथा शिल्पशास्त्र की शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए।” योगिनी एकादशी का व्रत: पुण्य और मुक्ति का साधन इसी अवसर पर स्वामी शंकर ने योगिनी एकादशी व्रत की महिमा का भी विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने बताया कि यह व्रत आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है और इसका फल 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर होता है। उनके अनुसार, “यह व्रत पापों के नाश और शापों से मुक्ति दिलाने वाला है। जो भक्त सच्चे मन से इस एकादशी का पालन करता है, उसे भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।” स्वामी शंकर ने यह भी कहा कि आज के युग में जब लोग भौतिकता की ओर भाग रहे हैं, ऐसे व्रत न केवल आत्मिक शुद्धि का माध्यम बनते हैं बल्कि व्यक्ति को अपने मूल धर्म और जीवन के उद्देश्य की ओर लौटने की प्रेरणा देते हैं।

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